लेकिन जिस स्वाभिमान से वह खड़ा है वह जानता है कि वह कितना महान है।
ढोसी की पहाड़ी अरावली पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी है जो हरियाणा के नारनौल शहर के पास है स्तिथ है और वर्तमान में ये पवित्र धाम है| कई लाख साल पहले ये एक ज्वालामुखी था लेकिन वर्तमान में ये निष्क्रिय ज्वालामुखी है| बताया जाता है कि 2 लाख साल पहले आखरी बार यहां लावा विस्फोट हुआ था जिसका प्रमाण पहाड़ी पर बिखरा लावा है जो इतने साल में पत्थर बन गया।
ना केवल ज्वालामुखी बल्कि ढोसी की पहाड़ी का भारत की संस्कृति और इतिहास में विशेष स्थान है। इस पहाड़ी का जिक्र हमें हिन्दू पुराणों और महाभारत में मिलता है। महाभारत के अनुसार अज्ञात वास के दौरान पांडव यहां इसी पहाड़ी पर रुके थे। केवल यही नहीं बल्कि हिंदुओ के प्रमुख वेद भी इसी पहाड़ी पर लिखे गए थे और आयुर्वेद की सबसे बड़ी औषधि च्यवनप्राश की खोज भी नारनौल में ढोसी की पहाड़ी पर हुई थी।
- ढोसी की पहाड़ी की ऊंचाई लगभग 470 मीटर है।
- पहाड़ी पर गुफा, महर्षि च्यवन का आश्रम, एक जर्जर किला और शिव मंदिर है।
- पहाड़ी पर हर सोमवती अमावस को मेला लगता है और हजारों श्रद्धालु आसपास से कुंड में स्नान करने आते है।
- पहाड़ी पर 8 किलोमीटर का परिकर्मा मार्ग भी है जिसे आमतौर पर हम ट्रेकिंग कहते है मगर लैंड स्लाइडिंग के चलते वो मार्ग भी जटिल ही चुका है, फिर भी कुछ श्रद्धालु उस पूरा करते है।
ये कुछ जानकारी थी इस पहाड़ी की जो वहां के स्थानीय निवासियों से मिली थी जिनका पहाड़ी की तलहटी एक गांव है। और उस गांव के सभी निवासी वैश्य है जो कि महर्षि च्यवन के वंशज है। अब बात करके है ढोसी की पहाड़ी से जुड़ी कहानियों की।
ढोसी की पहाड़ी पर महर्षि च्यवन और सुकन्या का विवाह
इस पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महर्षि च्यवन ढोसी की पहाड़ी पर तप कर रहे थे और कई सालो से वो तप करते हुए एक ही स्थान पर बैठे थे। सालो तक एक स्थान पर बैठकर तप करने से मिट्टी की एक मोटी परत उनके ऊपर जम गई थी।
इसी दौरान एक सूर्यवंशी राजा शर्यती पहाड़ी पर अपने परिवार सहित भ्रमण करते हुए पहुंचे, उनके साथ आई उनकी बेटी राजकुमारी सुकन्या ने जब महर्षि च्यवन को मिट्टी से ढका देखा तो भोलेपन में उन्होंने एक लकड़ी से उनकी आंख पर प्रहार किसी ताकि उनका ध्यान तप से हटे।
उस प्रहार से महर्षि च्यवन का ध्यान भंग हुए और उनकी आंख से खून बहने लगा। क्रोधित महर्षि के बारे में जब राजा को पता चला तो श्राप से बचने के लिए गिड़गिड़ाने लगे। राजकुमारी सुकन्या को भी इस हरकत पे पछतावा हुआ और माफी के साथ में उन्होंने महर्षि से विवाह किया और बाकी सारा जीवन भोग विकास त्याग कर उनके साथ आश्रम में ढोसी की पहाड़ी पर गुजारा।
ढोसी की पहाड़ी पर च्यवनप्राश की खोज
महर्षि च्यवन जब ढोसी पर आकर बसे थे उसकी वजह यही थी के वो जानते थे ये जगह जड़ी बूटियों से बाहरी हुई है। यहां रहकर यो तपस्या कर सकते है साथ के आयुर्वेद की कुछ नई खोज भी। जब पहले दिन महर्षि च्यवन पहाड़ी पर आए तो वो बीमार थे उनका शरीर भी बूढ़ा हो चुका था। यहां आने के बाद कुछ देर पेड़ के नीचे बिताने के बाद उन्होंने स्नान करने का सोचा।
अब जब उन्होंने उस कच्चे कुंड में स्नान किया तो बाहर आने के बाद उनके शरीर में बदलाव आ चुका था वो रोग मुक्त थे और फिर से जवान ( ऐसा पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रचलित है )| इसी चमत्कार के वजह से उन्होंने वहीं अपना डेरा जमा लिया, आश्रम का निर्माण किया और कुछ समय बाद आसपास की रियासतों के राजा वैद उनसे आयुर्वेदिक शिक्षा लेने वहां आने लगे।
ये सब बाते वैदिक काल की है और उस काल मै ढोसी की पहाड़ी पर महर्षि च्यवन ने आयुर्वेद कि शिक्षा कुछ राज वैदो को देनी शुरू की थी। उनके दो शिष्य थे अश्विनी बंधु यानी अश्विनी कुल के दो भाई जो राजा देवास के राज वैद थे। एक दिन महर्षि अश्विनी को कोई रोग हो गया तो उन्होंने अश्विनी बंधुओ से इस बार ने चर्चा कि और पहाड़ी पर मौजूद जड़ी बूटियों से एक ऐसी औषधि बनाने को कहा जिस से आयु बढ़े और शरीर रोग मुक्त रहे।
उसी चर्चा के बाद अश्विनी बंधुओ ने महर्षि च्यवन के मार्ग दर्शन में ढोसी की पहाड़ी से करीब 42 जड़ीबूटियां इक्कठी करी और उनका मिश्रण बनाया। इस मिश्रण को सबसे पहले महर्षि च्यवन ने चखा और उसी दिन से ये औषधि मिश्रण उनके दैनिक आहार में शामिल हो गया। इसी वजह सी इस मिश्रण का नाम पर च्यवनप्राश जिसको बनाने का सही तरीका और जड़ीबूटियां की जानकारी हम चरक संहिता पुस्तक से के सकते है।
पहाड़ी पर किले का निर्माण
जब हम ढोसी की यात्रा करते है तो एक विशाल दीवार पहाड़ी पर नजर आती है, ये दीवार 16वी सदी में हिन्दू सम्राट हेमू ने बनवाई थी। पहाड़ी पर किला केवल सुरक्षा के लिए बनाया गया था क्यूंकि यहां भारी मात्रा में जड़ीबूटियां है। वर्तमान में किला जर्जर हो चुका है केवल अवशेष बचे है।
मगर एक समय था जब यहां हेमू के सिपाही हमेशा पहरा देते थे, बाद में पानीपत के युद्ध में हेमू की मौत के बाद ये किला भी वीरान हो गया। ये इलाका सारा अकबर के मुगल सल्तनत का हिस्सा था इसलिए मुगलों के लिए उनके वैद भी यहां इसी पहाड़ी से जड़बुटिया ले जाते थे।
एक और आयुर्वेद का महान आविष्कार कायाकल्प जो कि प्राचीन समय में सुंदर दिखने के लिए उपयोग की जाती थी का आविष्कार भी ढोसी की पहाड़ी पर हुआ था। 5100 वर्ष पूर्व पांडव भी अज्ञातवास के दौरान पहाड़ी पर काफी समय तक रुके थे। और एक पौराणिक कथा के अनुसार जिस दिन पांडवो ने यहां स्नान किया था उस दिन सोमवती अमावस थी।
ढोसी की पहाड़ी हालांकि कोई मशहूर पर्यटन स्थल नहीं है बल्कि एक धार्मिक स्थल के रूप में ज्यादा प्रचलित है। और यही वजह है कि ज्यादातर लोग जो हरियाणा
के अन्य जिलों में रहते है वो इस पहाड़ी के बारे में नहीं जानते। अगर पर्यटन के लिहाज से देखा जाए तो भी ढोसी की पहाड़ी एक छोटी यात्रा एक दिवसीय यात्रा के लिए उपयुक्त स्थान है।
यहां ट्रेकिंग भी कर सकते है, था मंदिर भी है और एक पहाड़ी होने के वजह से यहां से सुंदर नजारे भी दिखते है और तो और अगर आप आयुर्वेद में रुचि रखते है यो यहां काफी सारी जड़ीबूटियां है देखने के लिए। इसलिए अगर कभी भी मौका मिले हरियाणा में नारनौल की तरफ जाने का तो जरूर कुछ समय निकाल कर ढोसी की पहाड़ी पर घूमने जाएं।
कैसे पहुंचे ढोसी की पहाड़ी
नारनौल शहर से पहाड़ी की दूरी लगभग 12 किलोमीटर है और एक अच्छा दुरुस्त सड़क मार्ग नारनौल से पहाड़ी तक जाने के लिए बना हुआ है। ढोसी की पहाड़ी कुलताजपुर गांव के पास पड़ती है और इसी गांव से पहाड़ी पर चढ़ने का मार्ग सीढ़ियां शुरू होती है। सबसे बढ़िया समय था जाने के लिए मानसून का समय है 1 या 2 बार बरसात होने के बाद था जड़ीबूटियां फल फूल जाती है इसलिए मेरे हिसाब से सबसे अनुचित समय है मानसून।
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